Friday, April 30, 2010


पिरोती हूँ जब यादों के मोती
मुस्कुराती हूँ अबस,
चमक उठती हैं
आँखों के किनारे
पानी की कुछ बूँदें,
क्यों ज़रूरी नहीं लगता
अब तुम्हें मेरे साथ बात भी करना,
क्यों अब तुम नहीं बैठते
मेरे साथ एक कमरे में,
मैं आज भी सुना सकती हूँ तुम्हे
वोही राजा रानी के क़िस्से
बदले में तुम मुझसे
एक बार लिपट जाओ
फिर से माँ कहके

1 comment:

  1. माँ की ममता को
    अनुपम शब्द देने की
    कामयाब कोशिश ...
    वाह !!
    प्रभावशाली लेखन के लिए
    बधाई .

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